जिज्ञासु के लिए सद्गुरु ही गति - १००८ ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीःअविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती '

 मन में जब प्रश्न उपस्थित हों तो कहा गया है कि क्षोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के पास जाना चाहिए। पुस्तक से पढकर आत्मान्वेषण करने को भी हमारे धर्मशास्त्रों में निषेध बताया गया है।


उक्त उद्गार परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती '१००८' ने चातुर्मास्य प्रवचन के अवसर पर कही।


उन्होंने कहा कि  गुरु का बहुत अधिक माहात्म्य होता है। पुस्तक से पढने पर जो बातें समझ नहीं आती वह गुरुमुख से सुनकर सहज ही समझ आ जाती हैं। जिस प्रकार समुद्र का जल यदि कोई सीधे पीना चाहे तो खारा लगता है पर वही जल जब समुद्र से सोखकर बादल बरसाता है तो अमृत जैसा हो जाता है।


आगे कहा कि अध्यापन के क्षेत्र में भी आधुनिक तकनीक आज इतनी अधिक विकसित हो गयी है पर फिर भी कोलेज और स्कूलों में आज भी पढाने वाले  नियुक्त किए जाते हैं। 


पूज्य शङ्कराचार्य जी के प्रवचन के पूर्व 

Swami Avimukteshwarananda Saraswati Maharaj Official Website

Swami Avimukteshwarananda Saraswati Maharaj

अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज
जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दःमहाराज  यूट्यूब चैनल

Comments

Popular posts from this blog

अभिमानी को नहीं मिलता ज्ञान - शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती

सनातनी वर्णव्यवस्था है सर्वोत्तम व्यवस्था - परमाराध्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती १००८